top of page

FOUNDING MEMEBERS

Shadow

Krishna Kumar Verma

मनुष्य के अस्तित्व का विस्मरण अवश्यं भावी है, पर हम अपनी क्षण भंगुरता से भयभीत होते हैं।अधिकांशतः हम मनुष्य किसी न किसी रूप में अमर होना चाहते हैं इसलिए ही इतिहास के महानतम राजाओं ने विशालतम इमारतों का निर्माण किया है, न ये नगर बसाये हैं ताकि वो उन इमारतों, नगरों से अपना नाम जोड़कर कई शताब्दि यों तक आम जन की स्मृति में अपने लिए स्थान बना सके पर साधारण मनुष्य इस प्रकार के सृजन के लिए सुसज्जित नहीं है, तो क्या वह हर बार यूँ ही विस्मृत कर दिया जायेगा? किसी भी प्रकार की सृजनात्मक कला आपको इस विस्मरण से बचा सकती है।पाषाण काल के आदिमानव आज भी अपने गुफाचित्रों से स्मृति में स्थान बनाये हुये हैं।सैकड़ों बर्षों पहले लिखी गई रामायण और महाभारत जैसी कहानियों से आज भी उनके रचियता जीवित हैं। कलमकार इसी सृजनात्मक सामर्थ्य को विकसित करने का प्रयास है।जिस प्रकार माँ को ईश्वर के समतुल्य देखा जाता है क्योंकि वह जीवन की रचना करती है ठीक वैसे ही जब मनुष्य किसी भी प्रकार की कला की जीवंत रचना कर पाता है तो वह सामान्य मनुष्यों से ऊपर उठ जाता है। महान पुत्र इतिहास के पन्नों में माता –पिता के नामों को भी अमर कर देते हैं और महानतम रचनायें अपने रचियता को ।पर कलमकार के पीछे की सोच सिर्फ़ इसी महत्वाकांक्षा तक सीमित नहीं थी।कलमकार महाविद्यालय में अन्य एक और सोसाइटी भर नहीं है अपितु ये एक परिवार है जो किसी के लिए अपने दरवाज़े बन्द नहीं रखता।आपने कभी एक पंक्ति भी स्वरचित न की हो तब भी आप कलमकार का भाग बन सकते हैं क्योंकि अनुभवहीन और अवसरहीन लोगों को सहयोग की अधिक आवश्यकता होती है और कलमकार के पीछे की सोच है कि उन सभी के लिए एक ऐसा मंच प्रदान करा जा सके जो अपनी रचनात्मकता और आत्मविश्वास को निखारना चाहते हैं, चाहे वो निपट अनुभवहीन ही क्यों न हो क्योंकि कंपनियों में पूर्व अनुभव माँगा जाता है परिवारों में नहीं।कलमकार आपको अवसर देता है कि आप अपनी कक्षाओं से बाहर निकलकर नये लोगों से मिल सके, कुछ नया सीख सकें और कुछ नया सीखा सकें।जब मैं कभी पीछे मुड़कर देखता हूं तो थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की कक्षा की स्मृति मेरे मुखार बिंदु पर मुस्कान नहीं लाती परतुं कलमकार की स्मृतियां अन्नया सही मुस्कुराहट ले आती है।मुझे सबसे अच्छे मित्र कलमकार और अन्य सोसाइटी में ही काम करने के ही दौरान मिलें हैं।कलमकार को जितना दिया है उससे अधिक पाया भी है।मेरे लिए कलमकार जीवन के संघर्षमय अंधकार में उस दीपक के समान है जो आशा की किरण जगाये हुए हैं आशा है कि आने वाले सदस्य इस दीपक को सूर्य में परिणत कर सकेंगे।हर विशाल बरगद की अपनी कहानी है कौन बाँध पाया हैं अंकुरधरा में।

Shadow

Mehul Rawat

I was massively into Literature. But when I joined DDUC there was no literary society in the college. That was disappointing. But then I met Krishna and Kaushalendra, my seniors with the idea and zeal, who looked to fill that gap. I immediately jumped on their wagon. More than anything Kalamkaar taught me that if there is a change you wish to see in the world, get down to bringing it about. We ran the club, unofficially and then officially. The amount of papads that we have rolled in the process are beyond recollection, but I remember that all of those were fun and full of poetry. Then we took other arts in, because an artist is not just limited to words. A limited artist is a paradox. An oxymoron. We couldn't limit ourselves. And this is my message for all- Grow, there are no limits. Grow! Take this name beyond college. Create the finest art. Teach and talk about it. Grow along with everyone. Be an everlasting family.

Shadow

Kaushlendra

धन वैभव कीचाह नहीं सर्वस्व समाज को अर्पणहै तभी तो दुनिया कहती है कि हम समाज के दर्पण है कभी कर्ण की चाह कभी अभिमन्यु की हुंकार हैं हम कलम कार हैं कलमकार हैं कलमकार हैं हम । । आज छः साल बाद भी अगर हम इन पंक्तियों को याद कर पा रहे हैं तो इसका पहला अर्थ तो यही है कि जीवन कि तमाम परिस्थितियों में सफल या असफल होने के बाद भी कुछ बचा है जो आँख बंद करने पर याद किया जा सकता है । कुछ ऐसा है जिसका अस्तित्व हमारे अस्तित्व और व्यक्तित्व से बहुत विशाल है । एक ऐसी संस्थाजो आपसी मित्रता,भाईचारा,सौहार्द और हमारे जीवट का प्रमाण है हालाँ कि समय की अनुकूल प्रतिकूल धारा में अथाह बारह मइस जीवट को छोड़ देते हैं किन्तु फिर भी कहीं से थोड़ी सी चिंगारी एक नयी आग बन के सुलग उठती है और हमें पुनः युद्ध करने कि हिम्मत देती है । कलमकार उसी अग्नि का परिणाम है। वे तमाम व्यक्ति जो अपने अस्तित्व का एक हिस्सा कलमकार को अर्पण कर चुके हैं आभार के पात्र हैं और वो सब समय के साथ अपने व्यक्तित्व को और विशाल होते देखेंगे ऐसी कामना है । जयहिन्द !

Shadow

Nagendra Singh

लोग अपने परिवार से दूर जाते हैं पढने के लिए लेकिन कैसा होगा अगर किसी को वहां एक और परिवार मिल जाये | कुछ ऐसा ही हुआ था मेरे साथ भी कलमकार सिर्फ एक सोसाइटी नहीं, परिवार था हम सब के लिए और एक घर में जब इतने सदस्य हों तो फिर क्या ही कहने और सब लोग एक दूसरे के दिलों में बसते थे | इस परिवार को बनाने का श्रेय भी बहुत से लोगों को जाता है सभी सदस्यों ने बहुत मन लगाकर मेहनत की और आज इसे इन उचाईयो तक पहुचाया है | बहुत अच्छा लगता है ये देखकर की आज भी लोगों में कलमकार को लेकर वही समर्पण का भाव है | आशा करता हूँ की आने वाले समय में भी ये परिवार प्रगति करता रहे और देश को बहुत से कलाकार प्रदान करे |

Shadow

Lokesh

वर्ष 2015 में बी. ए ( द्वितीय वर्ष) के दौरान शहीद भगत सिंह की स्मृति में एक कार्यक्रम ‘ अभिव्यक्ति’ सोसाइटी की ओर से आयोजित हुआ उस दौरान मेरी मित्र कृष्णा , कौशलेंद्र से चर्चा हो रही थी कि ऐसे किसी मंच का कॉलेज में अभाव है जो काव्यपाठ का अवसर प्रदान करता है,हम लोग , आदरणीय चारू कालरा मैडम से मिले, जिन्होंनें यह सलाह दी कि इच्छुक लोगों को अनौपचारिक संगठन बना कर कार्यक्रम आयोजित करो, सब अच्छा रहा तो सोसाइटी ज़रूर औपचारिक रूप लेगी , आदरणीय मैडम के मार्गदर्शन में हमने कार्यक्रम आयोजित किए, पंकज ,मेहुल,और अन्य मित्रों ने अथक परिश्रम किया, शुरुआत में अनौपचारिक कार्यक्रमों के आयोजन में वित्तीय तौर पर आदरणीय चारू मैम ने मदद की और साथ ही कुछ चंदा ( मित्रों से) इक्कठा किया, मैंने कृष्णा व कौशलेंद्र के साथ ‘ जानकी देवी कॉलेज’ में ‘ हिंदी साहित्य’ से जुड़ी प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में भाग लिया जिसमें हम तृतीय स्थान पर रहे व वहां से मिली धनराशि को क़लमकार के आयोजनों में खर्च किया,जिसकी हमें बहुत खुशी थी , कॉलेज से पास आउट होने के बाद जब क़लमकार के औपचारिक सोसाइटी बनने की सूचना मिली तो मेहनत रंग लाने का अपार हर्ष हुआ।

Shadow

Pankaj

An idea(Kalamkaar) becomes the reality when different people with the same mindset sits in a “Chai ki tapri”.

Shadow

Ashutosh

For me Kalamkaar was a chance encounter. My friends were hellbent on organizing a small poetry competition and they were short on manpower. They reached out to me and I did everything I can. Then it just snowballed from there and I started managing stuff around Kalamkaar and I also earned my nickname there “Bahubali”. Looking back on it I never thought that I’ll be that deeply involved with the Kalamkaar. I was one of the Non-Poets working at Kalamkaar but breaking bread with the folks there I learnt a thing or two about poetry myself and now I can’t stop pouring my heart out with a pen in one hand and paper in other. It really does that to you. In the end…. लगा कर आग सीने में.. हमने ये शौक़ पाले है.. कोई पूछे तो कह देना.. हम कलमकार वाले है..

Shadow

Anshul Singh

When Kalamkaar was founded I was under the impression that this is a poet exclusive clique and as a designer I don’t have much of a place in it. But my impression was soon shattered. My time working for Kalamkaar was definitely an experience I won’t forget, weather it was attending a 12 hr long kavisammelan or waking up whole night to make designs for our events. We went through lot of sleepless nights, anxiety, uncertainty, and self doubts. There were days when we were plagued by the thoughts that it’s a fruitless endeavour and we should just quit. But we endured it all; we went through lot of arguments just to get what we wanted, just to make our vision a reality. The making of the Kalamkaar logo in itself was quite an experience. The logo went through dozens of prototypes before becoming the identity that was embraced by everyone. Dozens of torn pages full of rough sketches; for weeks I was struggling to get it right; until one night I was trying again and Kaushlendra was giving me ideas and suddenly there it was, on the screen in front of us, just what I was looking for. And just like that logo of Kalamkaar was born.

Shadow

Tej Tarun Sharma

जिस तरह, मनुष्य जाति के फलने-फूलने में “सहोद्योग” का बहुत बड़ा योगदान रहा है, उसी तरह कलमकार की नींव भी सहोद्योग और बंधुता से सींची गई । कलमकार मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत टर्निंग प्वाइंट्स (मोड़ों) में से एक रहा है। जिस दौर में, कलमकार विचारों की दुनिया से वास्तविकता के धरातल पर आ रहा था तब मेरे लिए तो कलमकार, कौशलेंद्र, कृष्ण में कोई ज्यादा अंतर सा ही नही था । इस सब का अनुभव, और फिर सभी के साथ मिलकर वास्तविकता के धरातल पर कार्य करना गौरवपूर्ण अहसास था । शुरुआत से ही, अपने बौद्धिक और क्रियात्मक दायरे को बढ़ाना, नए विचारों को स्वीकार्यता देना, नए लोगों के साथ घुल मिल जाने से एक समूह के रूप में, एक सोसाइटी के रूप में हमने सदैव स्वीकार्यता के मूलमंत्र को अपनाए रखने का प्रयास किया । आगामी समय के लिए मानक स्थापित करने के उद्देश्य से साहित्य सम्मेलन जैसे आयोजनों ने, हम सभी को सिखाया और एक प्रबुद्ध नागरिक बनने की ओर अग्रसर किया । आपसी लगाव और कुटुम्ब वाले भावों ने दौड़ती हुई दुनिया के बीच हमारा हाथ थामा और हमें जीवन की अनुभूति दी । कलमकार एक विचार है, जो हम सब को अभी भी बाँधे हुए है, और यह उभयनिष्ठ विचार ही हम सबको संगठित करते हुए, तथाकथित पूर्णता की ओर अग्रसर करता है ।

Shadow

Sagar Sameer

Kalamkaar was an initiative by our seniors Krishna and Kaushalendra, a promise I made to them that all the work they have done won’t go in vain and we worked in every aspect of society to make it a place for all to come, contribute and grow. There was a time when we didn’t have ideas, money, support. But the larger goal of a safe place for students to grow was our first and foremost priority. As kalamkaar was given formal society status during our time, we had one special responsibility to set a pattern which future generations will follow up, we have worked on those front while our juniors brought the cohesiveness which was very much needed to bring all together. Their interactions kept things together always within society. One major initiative we took was of Literature festival, where we had Vani Prakashan and Speaking Tiger as our partners, it was the first of its kind in university. To bring authors, companies, teachers, administration, students together for one event under budget, made us go beyond our boundaries. All the experiences which we had in the making of kalamkaar, also made us who we are today. Our lives were changed after this, we joined colleges a science, commerce, art students but passed out as a Kalamkaar

bottom of page