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सूखा पड़ गया है  इस बाग में अब,
अब्र तुझे देख बरसना भूल जाते हैं।

रितिक चौहान

निकाल अपने से बाहर ऐ मेरे यार मुझे,
न पैरहन सा यूँ ख़ुद पर पहन उतार मुझे।
मैं दुख हूँ और मैं पत्थर पे भी उग आता हूँ,
जगह बनाने को काफ़ी है इक दरार मुझे।

अभय शुक्ला

आह! देखो ये प्यारी सी पंछी,
पंखों से अब आसमान चूमने को तैयार है।
पहले वृक्षों से शुरू कर या,
दूर क्षितिज को छू आ अगर यही तेरा ख़्वाब है।
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अंकित मिश्रा

वो कुल का चिराग हैं,
मैं वंश पर एक दाग हूँ।
वो अप्सरा है स्वर्ग की,
मैं दानवों का पाताल हूँ।
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अंकित मिश्रा

बाप की आँखों में ढ़लती उम्र फ़ानी देखना,
और पकते बालों में अपनी जवानी देखना।

देखते ही मुझको उसकी शादमानी देखना,
और कुछ पल ना दिखूँ तो नातवानी देखना।
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अभय शुक्ला

जो हैं तूफ़ाँ मे, साहिल जानते हैं,
भटकने वाले मंज़िल जानते हैं।

हमारा हल नहीं मिलता किसी को,
हमें सब अपनी मुश्क़िल जानते हैं।
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अभय शुक्ला

लम्हें बस इसी ख़्याल में कट रहे हैं।
किसके जवाब मेरे सवाल में कट रहे हैं।

कश्ती तो काग़ज़ की बना ली मैंने,
पेड़ निजी इस्तेमाल में कट रहे हैं।
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रितेश ठाकुर

तेरे बहाए हुए नजाने कहाँ बहें हम,
एक दरिया डूब गया किनारा देते देते।

ये आंसू अब सूख जाए तो अच्छा है,
तकिया थक चुका है सहारा देते देते।
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रितेश ठाकुर

यह सही वो ग़लत बचपन से सुनते हो।
किस बुनियाद पर यह दोनो चुनते हो।

ख़ाकसारों की जद्दो जहद, बढ़ती रही,
यह मुल्क सभी का है, क्यों कहते हो।
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आस्था

पहली दफ़ा घर का दाम देखा है।
मौत से लड़ता वो पैगाम देखा है।

हवाई जहाज़ से लौट रहे घर कई,
छालों से रिस्ता ये कलाम देखा है।
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आस्था

शाम की सुनहरी चमक चारो ओर फैली
मानो अभिनेता को देखने उमड़ी एक रैली
दिनभर घूम पंछी दाना लिए वापस आये
पंक्ति देखी?
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जतिन

अब आसमां में रहने लग गए हैं, ज़मीं को नहीं जानते।
जो हमारे हाथ में बड़े हुए, अब हमीं को नहीं जानते।

गलती उसकी नहीं उसके हालातो की है दोस्त,
रेगिस्तान में पले फूल हैं, नमी को नहीं जानते।
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ऋषि सूरी

याद तेरी दिला ना सकी शाम ढलती हुई।
और एक रात फ़िर से गयी हाथ मलती हुई।

शाम वीरान है और बस रह गयी है यहाँ,
तीरगी हर फिजा़ हर तरफ रक्स करती हुई।
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अनस

लोग कहते हैं, मैं झूठे वादे करता हूँ
कहते हैं,
"मैं झूठ बेचता हूँ।"
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निखिल

हमको असल इल्म है कुछ किताबों से यारी है,
खामोश रह कर पूरी ज़िन्दगानी गुज़ारी है।

अफसुर्दगी में पड़े हैं सभी राग ओ नगमें,
क्या पाँव से आपने आज पायल उतारी है।
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अनस

नहीं गलत चाँदी होना,
नहीं सही होना सोना
है चाँदी के हक़ में जो कुछ,
नहीं कभी पा सकता सोना।
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गौरव नैलवाल

कितनी अजीब बात है ना।आज काग़ज़ और स्याही आमने सामने हैं।दोनों एक -टक चुप खड़े हैं ।फिर एक दूसरे से बोल पड़े।लेकिन बातों - बातों में स्याही बोल उठी " ऐ कागज़,ये मेरी मासूम-सी मोहब्बत से हर कोई अनजान है ।लेकिन हम तो बने हैं एक दूसरे के लिए फिर भी इतने फासले क्यों है?"
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बुशरा नाज़

जीवन भी है इस ही पहर में
मृत्यु भी इस ही पहर में

होना है कल क्या जानते हो!
क्या खुदा को मानते हो?
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गौरव नैलवाल

एक आलम था की हाथ हाथों पर हुआ करते थे,
और तो और बस गाल गालों पर हुआ करते थे।
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हरेंद्र

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